हिंदू विवाह कॉन्ट्रैक्ट की तरह नहीं उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का फैसला पलटा
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में 'महत्वपूर्ण बात कही' अदालत बोली 'पति-पत्नी के बीच आपसी सहमति बन जाने पर भी,तलाक देते समय निचली अदालत को'विवाह खत्म करने का आदेश तभी देना चाहिए था।जब वह आदेश पारित करने की तारीख पर भी'आपसी सहमति बनी रहती।
हिंदू विवाह कॉन्ट्रैक्ट की तरह नहीं उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का फैसला पलटा
Hindu marriage is not like a contract, the High Court overturned the decision of the lower court.Vishva Bharti : Vijay Patel : UP : Prayagraj : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने,एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कि,हिंदू विवाह को एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह लेते हुए इसे भंग या समाप्त नहीं किया जा सकता।कोर्ट ने यह भी कहा कि, ‘शास्त्र सम्मत एवं संस्कार आधारित हिंदू विवाह को,बहुत सीमित परिस्थितियों में’ कानूनी रूप से भंग किया जा सकता है।जब वह संबंधित पक्षों द्वारा पेश हुए साक्ष्यों के आधार को देख ले।
हिंदू विवाह कॉन्ट्रैक्ट की तरह नहीं उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का फैसला पलटा
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हिंदू विवाह कॉन्ट्रैक्ट की तरह नहीं,स्वयं की शादी खत्म करने के खिलाफ एक महिला की अपील स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति स्वामित्व दयाल सिंह,और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ,छः सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा कि,’पति-पत्नी के बीच आपसी सहमति बन जाने पर भी,’तलाक करते समय निचली अदालत को विवाह खत्म करने का आदेश तभी देना चाहिए था।जब आदेश पारित करने की तारीख पर भी आपसी सहमति बनी रहती।
दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि,एक बार जब अपील करता ने दावा कर दिया कि,उसने अपनी आपसी सहमति वापस ले ली है और यह तथ्य रिकॉर्ड में दर्ज है।ऐसी दशा में निचली अदालत अपील करता को,उसके द्वारा पहले दी गई मूल सहमति का पालन करने के लिए,उसे बाध्य नहीं कर सकती।वह भी करीब तीन साल बीतने के बाद।
उच्च न्यायालय ने कहा ‘ऐसा करना न्याय का मजाक ही होगा।’ महिला ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश बुलंदशहर के 2021 में पारित आदेश के विरुद्ध,’हाई कोर्ट में अपील की थी। उसमें उसके पति की ओर से दायर तलाक की याचिका को अनुमति मिल गई थी।दोनों पक्षों का विवाह दो फरवरी 2006 को हुआ था।
विवाह के समय पति भारतीय सेना में कार्यरत थे। मामले में लगाए गए आरोपों के अनुसार महिला ने 2007 में अपने पति को छोड़ दिया था।वहीं 2008 में पति ने विवाह विच्छेदन के लिए मुकदमा दायर कर दिया था।इसमें पत्नी ने अपना लिखित बयान दर्ज कराया था।जिसमें कहा कि वह अपने पिता के साथ रहती है। मध्यस्थ की कार्रवाई में दोनों पक्षों ने अलग-अलग रहने का अपना विचार व्यक्त किया था।
बाद में पत्नी अपनी दी हुई सहमति से मुकर गई थी। महिला की ओर से पेश होते हुए,उनके वकील महेश शर्मा ने अदालत में दलील दी कि ये सभी दस्तावेज,और घटनाक्रम तलाक की कार्यवाही में अदालत के समक्ष लाए गए थे, लेकिन नीचे की अदालत ने उस तलाक की याचिका को,पहले दर्ज हुए लिखित बयान के आधार पर ही मंजूर कर लिया।महिला ने इस बात को लेकर,इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
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