- बॉलीवुड और सूफी संगीत का अनूठा संगम, कलाग्राम में बिखरी सुरों की महफिल
- मोहित चौहान की जादुई आवाज़ ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध
विजय कुमार पटेल : प्रयागराज। सोमवार की शाम कलाग्राम का सांस्कृतिक मंच संगीत प्रेमियों के लिए किसी जादुई अनुभव से कम नहीं था। प्रसिद्ध गायक मोहित चौहान की सुरीली आवाज़ ने जैसे ही मंच संभाला, दर्शकों की तालियों की गूंज से पूरा परिसर गूंज उठा। बॉलीवुड और सूफी संगीत का ऐसा संगम देखने को मिला, जिसने संगम नगरी की आध्यात्मिकता को और गहरा कर दिया।
संगीत की जादुई शाम, दर्शक हुए सराबोर
मोहित चौहान ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत “मसक्कली” गाने से की, जिसे सुनते ही श्रोता झूमने लगे। इसके बाद जैसे ही उन्होंने फिल्म रॉकस्टार का सुपरहिट गीत “साडा हक… एथे रख” गाया, युवा दर्शकों का जोश और बढ़ गया। इसके अलावा “नादान परिंदे”, “तू जाने ना”, “फिर से उड़ चला”, “मासूमियत की बारिशें” जैसे गानों की मनमोहक प्रस्तुति ने पूरे वातावरण को भावुक और रोमांचक बना दिया।
मोहित चौहान ने अपनी रूहानी आवाज़ में “मेरी भीगी-भीगी सी” प्रस्तुत कर दर्शकों को संगीतमय यात्रा पर ले गए, जिसे सुनकर लोग झूमने को मजबूर हो गए। खास बात यह रही कि उन्होंने श्रोताओं की मांग पर पहाड़ी लोक गीत भी गाए, जिससे उत्तराखंड और हिमाचल की संस्कृति की झलक मंच पर देखने को मिली।
कथक की मोहक प्रस्तुति, बांसुरी की मधुर धुनों ने बांधा समा
मोहित चौहान के बाद मंच पर आमद डांस सेंटर की संस्थापक एवं प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना रानी खानम ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मोह लिया। उन्होंने अपने सीनियर डांस ग्रुप के साथ मनमोहक लय और सुंदर हाव-भाव से एक अविस्मरणीय शाम दी। उनके नृत्य में कथक की गहराई, तकनीकी प्रतिभा और कलात्मक नवीनता का अनूठा संगम देखने को मिला।
इसके बाद जब बांसुरी वादक अजय प्रसन्ना ने अपनी बांसुरी पर सुरों की तान छेड़ी, तो पूरा परिसर संगीतमय हो उठा। उनकी बांसुरी की मधुर धुनों ने वातावरण को सुकून भरा बना दिया और श्रोताओं को एक दिव्य अनुभव का एहसास कराया।
लोकनृत्यों ने बढ़ाई सांस्कृतिक रंगत
सांस्कृतिक संध्या में भारत के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों ने लोकनृत्य की प्रस्तुतियां दीं। असम के कलाकारों ने ढोल, कुंडी, थाली, तासा जैसे वाद्ययंत्रों के साथ होली गेर नृत्य प्रस्तुत किया, जबकि हरियाणा के लोकनृत्य, उत्तराखंड का गढ़वाल नृत्य, कर्नाटक का ढोलू कुनिथा नृत्य, तेलंगाना का चिन्धु यक्षगान और असम का मुखा भाऊना नृत्य भी आकर्षण का केंद्र बने।
यह संगीतमय और सांस्कृतिक महोत्सव देर रात तक चला, जिसमें हज़ारों दर्शकों ने हिस्सा लिया और संगीत व नृत्य के इस अद्भुत संगम का भरपूर आनंद उठाया।