कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए, जुबां पे राधा-राधा नाम हो जाए भजन पर झूमा महाकुम्भ
सांस्कृतिक कुम्भ में भक्ति, लोकनृत्य और संगीत का अद्भुत संगम
विजय कुमार पटेल : प्रयागराज। प्रयागराज में आयोजित सांस्कृतिक कुंभ का मंच आज एक ऐसा नजारा पेश कर रहा था, जहां भक्ति संगीत, लोकनृत्य और भारतीय संस्कृति की विविधता का अद्भुत संगम देखने को मिला। दूधिया रोशनी से नहाया हुआ मंच, देशभर से आए कलाकारों की प्रस्तुतियां, और दर्शकों का उत्साह—यह सब मिलकर इस आयोजन को यादगार बना रहे थे। प्रसिद्ध गायक आदित्य सारस्वत के भजनों ने जहां भक्तिमय माहौल बनाया, वहीं विभिन्न राज्यों के लोकनृत्यों ने भारतीय संस्कृति की झलक पेश की। यह आयोजन भारतीय कला और परंपरा का उत्सव रहा, जो देर रात तक श्रोताओं और दर्शकों को मंत्रमुग्ध करता रहा।
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दूधिया रोशनी से जगमगाता कलाग्राम का मंच, खचाखच भरा दर्शक दीर्घा और हर तरफ भक्ति व उत्साह का माहौल। ऐसा नजारा मंगलवार को संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कुंभ के अंतर्गत देखने को मिला। इस आयोजन में देशभर के कलाकारों ने अपने नृत्य, संगीत और भजनों से श्रोताओं का दिल जीत लिया।
भक्ति संगीत से हुई शुरुआत
कार्यक्रम की शुरुआत प्रसिद्ध गायक आदित्य सारस्वत के भजनों से हुई। जैसे ही आदित्य मंच पर पहुंचे, दर्शकों ने तालियों की गूंज से उनका स्वागत किया। उन्होंने “हे राम, हे राम जग में साचो तेरो नाम” भजन से शुरुआत की और धीरे-धीरे “मंगल भवन अमंगल हारी”, “मोरा मन दर्पण कहलाए”, “माई तेरी चुनरिया लहराई” जैसे भजनों से माहौल को भक्तिमय कर दिया। उनकी प्रस्तुति “कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए, जुबां पे राधा-राधा नाम हो जाए” ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम का समापन “रघुपति राघव राजा राम” से हुआ, जिसने हर किसी के दिल में भक्ति की भावना जगा दी।
लोकनृत्य ने बांधा समां
भजनों के बाद मंच पर लोकनृत्यों की जुगलबंदी ने दर्शकों का मन मोह लिया। हिमाचल प्रदेश के कलाकारों ने गद्दी नाटी नृत्य प्रस्तुत किया, जिसमें ढोल, नरसिंघा और बांसुरी की धुनों पर चूड़ीदार पायजामा और ऊनी टोपी पहने कलाकारों ने गद्दी जनजाति की कला और जीवनशैली को जीवंत कर दिया। वहीं मथुरा के कलाकारों ने बृज के नृत्य से राधा-कृष्ण की लीला का अद्भुत प्रदर्शन किया। असम के कलाकारों ने बिहू नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को वहां की संस्कृति से रूबरू कराया। जबकि हरियाणा के फाग नृत्य और पंजाब के झूमर नृत्य ने ग्रामीण जीवन, प्रेम और प्रकृति के प्रति सम्मान को खूबसूरती से दर्शाया।
देर रात तक डटे रहे दर्शक
देर रात तक दर्शक अपनी कुर्सियों पर जमे रहे। हर प्रस्तुति के बाद तालियों की गूंज इस बात का प्रमाण थी कि यह आयोजन श्रोताओं के दिलों में गहरी छाप छोड़ने में सफल रहा।
सांस्कृतिक समागम का संदेश
सांस्कृतिक कुंभ ने न केवल भारतीय कला और संस्कृति को मंच प्रदान किया, बल्कि यह भी दिखाया कि विविधता में एकता ही हमारी पहचान है।
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